Wednesday, January 16, 2008

Jamun

शरीर स्वास्थ्य
जामुन
वर्षा ऋतु के आरम्भ में अर्थात जून-जुलाई में जामुन के फल परिपक्व होते हैं। जामुन स्वादिष्ट फल तथा गुणकारी औषधी भी है। इसके फल, गुठली, छाल, पत्ते सभी औषधीय गुणों से सम्पन्न हैं। जामुन में कैल्शियम, फॉस्फोरस, व विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
यह कफ व पित्त का शमन करता है परंतु प्रबल वायुवर्धक है। इसके सेवन से पित्त के कारण होने वाली कंठ की शुष्कता, जलन व आंतरिक गर्मी दूर होती है। दाँत व मसूड़े मजबूत बनते हैं, दाँतों के कृमि नष्ट होते हैं। यह उत्तम कृमिनाशक व थकावट दूर करनेवाला है। अधिक सेवन से मलावरोध करता है।
यह यकृत (Liver) व तिल्ली (Spleen) की कार्यक्षमता बढ़ाता है जिससे पाचनशक्ति में वृद्धि होकर नवीन रक्त की उत्पत्ति में सहायता मिलती है।
जामुन के बीजों का उपयोग विशेषतः मधुमेह में किया जाता है। इनमें स्थित जम्बोलिन नामक ग्लुकोज़ स्टार्च के शर्करा में होने वाले विकृत रूपांतरण को रोकता है। छाया में सुखाये गये गुठलियों का चूर्ण छः-छः ग्राम दिन में दो-तीन बार लेना मधुमेह में लाभदायी है।
जामुन के कोमल पत्तों का रस पित्तशामक होने के कारण उलटी तथा रक्तपित्त में बहुत लाभदायी है।
महिलाओं के अत्यधिक मासिक स्राव में जामुन के कोमल पत्तों का 20 मि.ली। रस मिश्री में मिलाकर सुबह-शाम लेना चाहिए।
अधिक व बार-बार पेशाब होने पर जामुन-बीज का चूर्ण व पिसे हुए काले तिल समभाग मिलाकर 3-3 ग्राम मिश्रण दिन में 2 बार लें। अन्य औषधी-प्रयोगों से थके-हारे रूग्णों को भी इस प्रयोग से राहत मिलती है। बच्चों के बिस्तर में पेशाब करने की आदत में 2 ग्राम मिश्रण 2 बार पानी के साथ दें।
जामुन के पत्तों को जलाकर बनाए हुए भस्म का मंजन करने से मसूड़ों के रोग नष्ट होते हैं।
सावधानीः जामुन का सेवन भोजन के आधा एक घंटे बाद सीमित मात्रा में करना चाहिए। खाली पेट जामुन खाने से अफरा हो जाता है। सेंधा नमक, धनिया और काली मिर्च का चूर्ण छिड़क कर खाना अधिक हितावह है। जामुन के अधिक सेवन से फेफड़ों में कफ जमा हो जाता है।
स्मृतिवर्धक, कैंसर निवारक, त्रिदोषनाशक
तुलसी अर्क
धर्मशास्त्रों में तुलसी को अत्यंत पवित्र व माता के समान माना गया है। तुलसी एक उत्कृष्ट रसायन है। आज के विज्ञानियों ने इसे एक अदभुत औषधी (Wonder Drug) कहा है।
मात्राः 10 से 20 मि.ली. अर्क में उतना ही पानी मिलाकर खाली पेट ले सकते हैं। रविवार को न लें। तुलसी अर्क लेने के पूर्व व बाद के डेढ़-दो घंटे तक दूध न लें।
लाभः यह सर्दी जुकाम, खाँसी, एसिडिटी, ज्वर, दस्त, उलटी, हिचकी, मुख की दुर्गंध, मंदाग्नि, पेचिस में लाभदायी व हृदय के लिए हितकर है। यह रक्त में से अतिरिक्त स्निग्धांश को हटाकर रक्त को शुद्ध करता है। यह सौंदर्य, बल, ब्रह्मचर्य एवं स्मृति वर्धक व कीटाणु, त्रिदोष और विष नाशक है।
शरीर को पुनः नयापन देने वाला
पुनर्नवा अर्क
पुनर्नवा शरीर के कोशों को नया जीवन प्रदान करने वाली श्रेष्ठ रसायन औषधी है। यह कोशिकाओं में से सूक्षम मलों को हटाकर संपूर्ण शरीर की शुद्धि करती है, जिससे किडनी, लीवर, हृदय आदि अंग-प्रत्यंग की कार्यशीलता व मजबूती बढ़ती है तथा युवावस्था दीर्घकाल तक बनी रहती है।
लाभः यह अर्क किडनी व लीवर के रोग, उदररोग, सर्वाँगशोथ (सूजन), श्वास, पीलिया, जलोदर (Ascitis), पांडु (रक्ताल्पता), बवासीर, भगंदर, हाथीपाँव, खाँसी तथा जोड़ों के दर्द में विशेष लाभदायी है। यह हृदयस्थ रक्तवाहिनियों को साफ कर हृदय को मजबूत बनाता है। आँखों के लिए भी हितकारी है।
मात्राः 20 से 50 मि.ली. अर्क आधी कटोरी पानी में मिलाकर दिन में एक या दो बार लें। इसके सेवन के बाद एक घंटे तक कुछ न लें।
केवल साधक परिवार के लिए संत श्री आसारामजी आश्रमों व सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध।
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