Wednesday, January 16, 2008

Yoga Amrit



योगामृत


पेट के दोष, बहुत सारे रोग मिटाए और पाचन सबल बनाए-त्रिदोषनाशक स्थलबस्ति

भूमि पर कंबल बिछा कर लेट जाएँ, फिर गुदा को सिकोड़ें तथा फैलाएँ।
घेरंड संहिता की कुछ टीकाओं के अनुसार स्थलबस्ति में पादपश्चिमोत्तानासन की स्थिति में अश्विनी मुद्रा की जाती है। यह प्रयोग भी बहुत सरल है। इसमें पैरों को फैला कर उनके बीच 12 इंच का अंतर रखें। आगे उतना ही झुकें जितने में आप अपने पैरों की उँगलियों को पकड़ सकें। इस स्थिति में अश्विनी मुद्रा का अभ्यास करें।
श्वासक्रियाः श्वास लेते समय गुदा द्वार का आंकुचन अर्थात ऊपर की ओर खींचा जाता है और श्वास छोड़ते समय प्रसरण किया जाता है।
लाभः स्थलबस्ति के अभ्यास से पेट के दोष, आम व वातजन्य रोगों का शमन और जठराग्नि का वर्धन होता है। इससे पित्त तथा कफ के दोषों का नाश होता है और पेट निरोग बनता है। यह सभी प्रकार के रोगों से रक्षा करती है। व्याधि उत्पन्न होने पर उसे जड़ से हटाने में भी सहायक होती है।
अश्विनी मुद्रा से मूलाधार व स्वाधिष्ठान चक्र विकसित होते हैं। इससे बुद्धि व प्रभावशाली व्यक्तित्व के विकास में बड़ा सहयोग मिलता है।
स्थलबस्ति से शरीर के साथ मानसिक विकारों पर भी नियंत्रण होता है। ब्रह्मचर्य पालन में सहायता मिलती है। साधकों को साधना में शीघ्र उन्नत होने हेतु भी यह खूब सहायक है।
सावधानीः उच्च रक्तचाप, हर्निया व पेट के गंभीर रोगों में यह प्रयोग वर्जित है।


एक्यप्रेशर के दो उपयोगी बिन्दु


सूर्यबिन्दुः सूर्यबिन्दु छाती के पर्दे (डायफ्राम) के नीचे आये हुए समस्त अवयवों का संचालन करता है। नाभि खिसक जाने पर अथवा डायफ्राम के नीचे के किसी भी अवयव के ठीक से कार्य न करने पर सूर्यबिन्दु पर दबाव डालना चाहिए।
शक्तिबिन्दुः जब थकान हो या रात्रि को नींद न आयी हो तब इस बिन्दु को दबाने से वहाँ दुखेगा। उस समय वहाँ दबाव डालकर उपचार करें।
स्रोतः ऋषि प्रसाद जनवरी 2007, पृष्ठ संख्या 28

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