Wednesday, January 16, 2008

Swasthya Sanjivani

स्वास्थ्य संजीवनी
वसन्त ऋतु में ध्यान दें।
• वसन्त ऋतु में भारी, अम्लीय, स्निग्ध और मधुर आहार का सेवन व दिन में शयन वर्जित है।
• वसन्ते भ्रमणे पथ। वसन्त ऋतु में खूब पैदल चलना चाहिए। व्यायाम कसरत विशेष रूप से करना चाहिए।
• इन दिनों में तेल-मालिश, उबटन लगाना व नाक में तेल(नस्य) डालना विशेष लाभदायी है। नस्य व मालिश के लिए तिल तेल सर्वोत्तम है।
• अन्य ऋतुओं की अपेक्षा वसन्त ऋतु में गौमूत्र का सेवन विशेष लाभदाय़ी है।
• सुबह 3 ग्राम हरड़ चूर्ण में शहद मिलाकर लेने से भूख खुलकर लगेगी। कफ का भी शमन हो जाएगा।
• इन दिनों में हलके, रूखे, कड़वे, कसैले पदार्थ, लोहासव, अश्वगंधारिष्ट अथवा दशमूलारिष्ट का सेवन हितकर है।
• हरड़ चूर्ण को गौमूत्र में धीमी आँच पर सेंक लें। जलीय भाग जल जाने पर उतार लें। इसे गौमूत्र हरितकी कहते हैं। रात को 3 ग्राम चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें। इससे गौमूत्र व हरड़ दोनों के गुणों का लाभ मिलता है।
कड़वा रसः स्वास्थ्य-रक्षक उपहार
वसन्त ऋतु में कड़वे रस के सेवन का विशेष लाभदाय़ी है। इस ऋतु में नीम की 15-20 कोंपलें व तुलसी की 5-10 कोमल पत्तियाँ 2-3 काली मिर्च के साथ चबा-चबाकर खानी चाहिए। ब्रह्मलीन स्वामी श्री लीलाशाह जी यह प्रयोग करते थे। पूज्य बापू जी कभी-कभी यह प्रयोग करते हैं। इसे 15-20 दिन करने से वर्ष भर चर्म रोग, रक्तविकार और ज्वर आदि रोगों से रक्षा करने की प्रतिरोधक शक्ति पैदा होती है। इसके अलावा नीम के फूलों का रस 7 से 15 दिन तक पीने से त्वचा के रोग और मलेरिया जैसे ज्वर से भी बचाव होता है। इस ऋतु में सुबह खाली पेट हरड़ का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता है।
19 मार्च को चैत्री नूतन वर्षारंभ अर्थात् गुड़ी पड़वा (वर्ष प्रतिपदा) है। इस दिन स्वास्थ्य-सुरक्षा तथा चंचल मन की स्थिरता के लिए नीम की पत्तियों को मिश्री, काली मिर्च, अजवायन आदि के साथ प्रसाद के रूप में लेने का विधान है। आजकल अलग-अलग प्रकार के बुखार, मलेरिया, टायफायड, आंतों के रोग, मधुमेह, मेदवृद्धि, कोलस्टेरोल का बढ़ना, रक्तचाप जैसी बीमारियाँ बढ़ गयी हैं। इसका प्रमुख कारण भोजन में कड़वे रस का अभाव है। भगवान आत्रेय ने चरक संहिता में कहा हैः
तिक्तो रसः स्वमरोचिष्णुरप्यरोचकघ्नो विषघ्नः कृमिघ्नो मूर्च्छादाहकण्डू कुष्ठतृष्णाप्रशमनस्त्वङ् मांसयोः स्थिलीकरणो ज्वरघ्नोदीपनः पाचनः स्तन्यशोधनो लेखनः क्लेदमेदोवसामज्जलसीकापूयसवेदमूत्रपुरीषपित्तश्लेष्मोशोषणो रूक्षः शीतो लघुश्च।
कड़वा रस स्वयं अरूचिकर होता है किंतु सेवन करने पर अरूचि को दूर करता है। यह शरीर के विष व कृमि को नष्ट करता है, मूर्च्छा (बेहोशी), जलन, खुजली, कोढ़ और प्यास को नष्ट करता है, चमड़े व मांसपेशियों में स्थिरता उत्पन्न करता है (उनकी शिथिलता को नष्ट करता है)। यह ज्वरशामक, अग्निदीपक, आहारपाचक, दुग्ध का शोधक और लेखन (स्थूलता घटाने वाला) है। शरीर का क्लेद, मेद, चर्बी, मज्जा, लसीका (lymph), पीब, पसीना, मल, मूत्र, पित्त और कफ को सुखाता है। इसके गुण रूक्ष, शीत और लघु हैं।


(सूत्रस्थान, अध्याय-26)
स्रोतः ऋषि प्रसाद फरवरी 2007, पृष्ठ संख्या 29.
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